महिलाओं और पुरुषों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं एक-दूसरे से अलग होती हैं। ऐसे में दोनों को होने वाली बीमारियां और उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव भी अलग होते हैं।
मासिक धर्म, गर्भावस्था, प्रसव और रजोनिवृत्ति महिलाओं के जीवन का हिस्सा हैं, जो उन्हें पुरुषों से अलग बनाती हैं, ऐसे में उनकी बीमारियां और शरीर पर पड़ने वाला इसका प्रभाव भी अलग होता है। कई ऐसी बमारियां भी हैं जो सिर्फ महिलाओं को प्रभावित करती हैं। इसलिए महिलाओं को अपने स्वास्थ्य पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है।
विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करने वाली बीमारियां –
स्त्रीरोग संबंधी स्वास्थ्य समस्याएं जैसे अनियमित पीरियड्स, बैक्टीरियल वजिनोसिस, पीसीओएस, एंडोमेट्रियोसिस, एडिनोमायोसिस, यूटेराइन फाइब्रॉयड और वुल्वोडनिया जैसे विकार।
गर्भावस्था से संबंधित समस्याएं जैसे प्रसव के बाद की देखभाल, गर्भपात, समय से पहले बच्चे का जन्म, सिजेरियन सेक्शन, जन्म दोष, स्तनपान संबंधी समस्या और प्रसव के बाद अवसाद की अवस्था।
ओवेरियन कैंसर और सर्वाइकल कैंसर।
टर्नर सिंड्रोम और रेट्स सिंड्रोम जैसे विकार।
हिंसा जैसे महिला जननांग विकृति और शिशु हत्या।
ऐसी कई बीमारियां हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को हो सकती हैं, लेकिन ये बीमारियाँ महिलाओं को अलग रूप से प्रभावित करती हैं –
शराब की आदत का प्रभाव पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक पड़ता है। शराब की लत के चलते उनमें स्तन कैंसर, दिल संबंधी रोग और भ्रूण के अल्कोहल सिंड्रोम (जहां माँ के शराब पीने की आदतें शिशुओं के मस्तिष्क को क्षति पहुंचा सकती है) जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
हृदय रोग पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करते हैं, लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाओं में दिल का दौरा पड़ने से मौत की आशंका अधिक रहती है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अवसाद और चिंता होने की समस्या अधिक होती है, प्रसव के बाद अवसाद का डर महिलाओं में अधिक रहता है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में गठिया की समस्या होने का खतरा अधिक रहता है।
यौन संचारित रोग (एसटीडी) पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करते हैं, लेकिन उपचार में देरी से महिलाओं में बांझपन हो सकता है। महिलाओं में इसके लक्षण कई बार बहुत स्पष्ट नजर नहीं आते हैं, जिनके चलते उनका उपचार नहीं हो पाता है।
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (एपीए) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाओं में तनाव बढ़ रहा है और जिससे उनमें बांझपन होने का खतरा अधिक रहता है।
पुरुषों की तुलना में महिलाएं स्ट्रोक का शिकार ज्यादा होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जहां स्ट्रोक का प्रमुख कारण परिवारिक इतिहास, हाई ब्लडप्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल होता है, वहीं गंर्भनिरोधक दवाओं, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी और गर्भावस्था के चलते महिलाओं में यह खतरा बढ़ जाता है।
पेशाब के तरीके के चलते पुरुषों की तुलना में महिलाओं को मूत्रमार्ग संक्रमण (यूटीआई) होने का खतरा अधिक रहता है।
महिलाओं में आमतौर पर होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को ध्यान में रखते हुए डब्ल्यूएचओ जैसी शीर्ष संस्थाओं ने इन पर विशेष ध्यान देने की अपील की है। महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े निम्नलिखित 10 मुद्दों पर भारत सहित दुनियाभर के देशों को ध्यान देने की आवश्यकता है।
1. कैंसर
महिलाओं में दो प्रकार के कैंसर (स्तन और सर्वाइकल) होने का खतरा सबसे अधिक रहता है। प्रति वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हर साल लगभग 5 लाख महिलाएं इन दोनों प्रकार के कैंसर के चलते मौत का शिकार हो जाती हैं। अगर इन कैंसर के लक्षण समय रहते पता चल जाएं तो उनके ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।
2. प्रजनन से संबंधित जानकारियां
प्रजनन और उससे जुड़े कई पहलुओं पर कई अध्ययन किए जा चुके हैं। प्रजनन प्रणाली एक जटिल प्रक्रिया है। वैसे तो यूटीआई और बैक्टीरियल संक्रमण महिला की गर्भधारण शक्ति को प्रभावित नहीं करते हैं। हालांकि, भविष्य में इसके कई दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े तथ्यों को जानने और समझने के लिए निम्न विषयों पर ध्यान देना आवश्यक है।
प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में फैली अफवाहों को दूर करना
प्रजनन और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में लोगों को जागरुक करना
गर्भनिरोधकों के प्रयोग के बारे में जागरुकता और लोगों तक इसकी उपलब्धता को आसान बनाना।
बच्चों को यौन शिक्षा और इससे जुड़ी जानकारियां देना।
3. संबंधी स्वास्थ्य जानकारियां
प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल से ही शिशु के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ साथ विश्वस्तर पर मातृ मृत्यु की संख्या को कम किया जा सकता है। इस संबंध में डॉक्टरों के साथ-साथ दोस्तों और परिवार के देखभाल की एक बड़ी भूमिका रहती है। मातृ स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए।
प्रसव पूर्व और प्रसव के बाद की देखभाल के बारे में उचित जानकारी
गर्भावस्था से पहले और उसके दौरान स्क्रीनिंग, परीक्षण और टीकाकरण के सस्ते इंतजाम
पोषण, व्यायाम और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल पर विशेष जोर
गर्भपात की स्थिति में मां का विशेष शारीरिक ध्यान और ख्याल रखना
लड़कियों के जन्म से जुड़े मिथों और पुरानी सोच को दूर करना
4. एचआईवी / एड्स
जागरुकता के अभाव में इस बीमारी ने दुनियाभर में तेजी से अपने पांव फैलाए हैं। ह्यूमन इम्यूनोडिफ़िशिएंसी वायरस (एचआईवी) के पहले मामले के सामने आने के तीन दशक बाद भी अब तक इसके खतरे को कम नहीं किया जा सका है। युवा महिलाओं में इस संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। यौन शिक्षा, कंडोम की लोगों तक पहुंच न होना, साथ ही सुरक्षित सेक्स के बारे में जानकारियों के अभाव के चलते इस संक्रमण का फैलाव तेजी से हुआ। लोगों को जागरुक कर इस संक्रमण को रोकने के व्यापक प्रयास किए जाने की आवश्यक है।
5. यौन संचारित रोग
एचआईवी / एड्स और एचपीवी के अलावा, महिलाओं में गोनोरिया, क्लैमाइडिया और सिफलिस जैसे यौन संचारित रोगों के होने का खतरा होता है। चूंकि, पुरुषों की तरह महिलाओं में इसके स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते हैं, इसलिए इसका आसानी से उपचार नहीं हो पाता है। इन संक्रमणों से न केवल महिलाओं को स्वास्थ्य समस्याओं से दो चार होना पड़ता है, साथ ही उनके प्रसव और शिशु स्वास्थ्य में भी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं।
6. महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को रोकना
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, 50 वर्ष से कम आयु वाली हर तीन में से एक महिला को परिचित या किसी अजनबी से यौन हिंसा का शिकार होना पड़ता है। हिंसा चाहे शारीरिक हो या यौन प्रकृति की, इसका महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
7. मानसिक स्वास्थ्य
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक अवसाद, चिंता और कई तरह की मनोदैहिक शिकायतें महिलाओं में अधिक देखने को मिलती हैं। इसका कई बार मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक असर देखने को मिलता है, जो जीवन को प्रभावित कर सकती है। यही कारण है कि महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
8. गैर-संचारी रोग
महिलाओं में गैर-संचारी रोगों जैसे मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा आदि तेजी से फैल रही बीमारियां हैं। इनकी रोकथाम के लिए निम्न बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
इन बीमारियों के बारे में लोगों के बीच जागरुकता फैलाना। इससे लड़ने के लिए उचित उपचारों के बारे में जानकारी देना।
लड़कियों और महिलाओं को उचित पोषण, व्यायाम और मानसिक स्वास्थ्य के द्वारा जीवनशैली को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करना।
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों और दवाओं की लोगों तक आसान पहुंच को सुनिश्चित करना।
9. कम उम्र में महिलाओं को होने वाली समस्याएं
आज कल कम उम्र से ही लड़कियों को जीवनशैली से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं। भविष्य में यह बड़ी बीमारी का रूप भी ले सकती हैं। उचित पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों के अभाव में उन्हें कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे एसटीआई, यूटीआई, एचआईवी और कई तरह की प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य चुनौतियां उनके सामने खड़ी हो सकती हैं।
10. उम्र के साथ महिलाओं को होने वाली समस्याएं
विकासशील समाज में उम्र बढ़ने के साथ महिलाएं काम के लिए घर से बाहर जाना बंद कर देती हैं। जिससे उनके लिए पेंशन, स्वास्थ्य बीमा और इससे जुड़ी सेवाओं का लाभ लेना मुश्किल हो जाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ महिलाओं में पुरानी गठिया, ऑस्टियोपोरोसिस, मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और गुर्दे की बीमारी होनी आम समस्या है।