नपुंसकता
शीघ्रपतन
धातु स्राव
सिफिलिस
सुजाक
नपुंसकता
यदि सम्भोग के समय पुरुष के लिंग में वांछित टायट्नेस या सख़्ती न होने से अपेक्षित सेक्स न हो पाए जिससे एक या दोनो पार्ट्नर्ज़ को परेशानी हो या संबंधो में तनाव हो तो इस को नपुंसकता की स्थिति कहा जाता है।
पर यहाँ पर यह बात ध्यान देने की है कि यदि कभी कभार ही ऐसी स्थिति हो तो इसका अर्थ यह नहीं है कि पुरुष को नपुंसकता की समस्या है।
दरअसल सेक्स के समय लिंग में इतनी कठोरता होनी चाहिए कि सेक्स के समय लिंग योनी में आसानी से प्रवेश कर सके। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सेक्स के दौरान कठोरता में थोड़ी कमी होना सामान्य बात है परंतु यदि आप सेक्स प्रक्रिया को सुगमता से पूर्ण कर लेते है तो चिंता कि कोई बात नहीं है।
आइये अब जानते है कि लिंग में सामान्य तौर पर कठोरता कैसे आती है –
जब आप सेक्स के लिए सामान्य कामक्रीड़ा आरम्भ करते है तो वांछित संदेश दिमाग़ की नाड़ियों से आपके लिंग में पहुँचता है। इस से नाइट्रिक आक्सायड गैस बनती है जिस से लिंग में रक्त संचार सामान्य से दस गुना तक बढ़ जाता है। परिणाम स्वरूप लिंग का आकार बढ़ जाता है। जब रक्त संचार व्यवस्था में ऐसा हो जाए कि रक्त लिंग में रहै पर वापिस शरीर में न जा सके तो अधिकतम कठोरता आ जाती है। सेक्स क्रिया पूरी होने पर रक्त संचार वापिस शुरू हो जाता है और समय के साथ धीरे – धीरे सारा अतिरिक्त रक्त शरीर में वापिस चला जाता है।
पर जब बात आती है कि नपुंसकता की समस्या कितने लोगों को है तो इस बारे में कोई विश्वसनीय आँकड़े नहीं है परंतु अनुमान के अनुसार चालीस वर्ष तक के 40-50% लोगों में और सत्तर वर्ष की आयु तक के पुरुषों में से 70-80% को इस समस्या का सामना करना पड़ता है ।
नपुंसकता के मुख्य कारण है –
मनोवेज्ञानिक कारण – जिनसे दिमाग़ में आवश्यक सेक्स संदेश ही पैदा नहीं होते जैसे डिप्रेशन, ऐंज़ाइयटी , चिंता , आत्मविश्वास की कमी या कोई डर।
रक्त संचार की कमी जैसे रक्त की नाड़ियों का सिकुड़ जाना तो आवश्यक रक्त की मात्रा ही सेक्स के समय लिंग में नहीं जा पाती । ऐसे में लिंग में कठोरता आयेगी ही नहीं
उच्च रक्त चाप , मधुमेह और अनेक ऐसी सामान्य समझी जाने वाली बीमारियाँ
अनेक दवाओं के साइड इफ़ेक्ट
टेस्टास्टरोन हॉर्मोन की कमी
तम्बाकू , शराब या कोई अन्य नशा
मोटापा
डॉक्टर से कब सम्पर्क करना चाहिए –
यदि आप लगातार तीन से चार सप्ताह तक कोशिश करने पर भी सेक्स न कर पाए तो तुरंत सेक्सोलोजिसट से संपर्क करना चाहिए, ताकि बीमारी को गंभीर समस्या बनने से पहले उसका इलाज किया जा सके।
नपुंसकता के कारण का पता लगाया जा सकता है –
पुरानी हिस्ट्री से मनोवेज्ञानिक और शारीरिक कारणों का पता लगाया जाता है।
रक्त जाँच से हॉर्मोन , शुगर और अन्य बीमारियों का पता लगाया जाता है।
डाप्लर जाँच या अल्ट्रसाउंड से रक्त संचार का पता लगाया जाता है।
नाड़ियों की जाँच से नर्व्ज़ की बीमारी का पता लगाया जाता है।
एन॰पी॰टी॰- इससे ये पता लग जाएगा कि नपुसकता मनोविज्ञानी है या शारीरिक कारण से
उपचार-
इस समस्या का उपचार सम्भव है इसलिए यदि आप अपने जीवन में नपुंसकता का शिकार है तो घबराये नहीं।
आइये इसके उपचार के तरीकों के बारे में जान लेते है –
खाने की दवाई – कई तरह की दवा उपलब्ध है जैसे सिल्डेनफ़िल, तदलफ़िल, उदेनफ़िल, वेरदेनफ़िल, अवनफ़िल जैसे आठ तरह के मालक्यूल उपलब्ध है । इन्हें सेक्स से एक घंटे पहले ख़ाली पेट लेना चाहिए और सामान्य काम क्रीड़ा में फ़ोकस करना चाहिए। फ़ोरप्ले के बगैर इन दवाओं का कोई असर नहीं होता। ये कोई रामबाण नहीं है कि हर बार हर समस्या में फ़ायदा करे। इन्हें डॉक्टर की सलाह पर ई॰डी॰ के उपचार के लिए ही उपयोग करना चाहिए। कई बार कम से कम पाँच बार लगातार लेने पर ही इनका फ़ायदा महसूस होता है । इसलिए एक प्रयोग पर यदि फ़ायदा न हो तो निराश होने की ज़रूरत नहीं। यदि पाँच बार लेने पर भी असर न हो तो भी कई आप्शन होते हे।
इन दवाओं के कई साइड इफ़ेक्ट है जैसे – सिर दर्द , असिडिटी , क़मर दर्द, घबराहट और बेचैनी ।
साथ ही हार्ट प्रॉब्लम के लिए नाइट्रेट दवा आप को दी जा रही हो तो इन दवाओं को लेना पूरी तरह वर्जित है ।
अतः बिना किसी डॉक्टर के परामर्श के दवाओं को ना लें।
इन दवाओं के अतिरिक्त हॉर्मोन उपचार ,मानसिक तनाव के उपचार के लिए उपयुक्त दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
2. इंटरापीनायल इंजेक्शन थेरपी – ऊपर बताई गई दवाओं से सौ में से साठ को ही फ़ायदा होता है । ऐसे लोगों के लिए ये विधि अत्यंत कारगर है । कुछ दवाओं जैसे प्रॉस्टग्लैंडिन, पपवेरने और क्लोर प्रोमाजिन आदि अकेले या मिक्स करके उपयुक्त डोस में दी जाए तो लिंग पर इनका शानदार असर होता है ।
पर बिना किसी सेक्सोलोजिस्ट के परामर्श के इन दवाइयों का सेवन शरीर को बहुत नुकसान पहुंचा सकता है।
दरअसल पहले हॉस्पिटल में डॉक्टर ये पहचान करेंगे कि आपको किस दवा की कितनी मात्रा से उपयुक्त रेस्पॉन्स मिल रहा है। फिर आपको छोटी इंसुलिन सिरिंजज़ में दवा की उतनी मात्रा ही तैयार करके घर ले जाने को कहेंगे। पहले आप को स्वयं से या पार्ट्नर से इंजेक्शन कैसे लेना है – इस में प्रशिक्षित करेंगे। इस में भी इंजेक्शन लेकर सामान्य काम क्रीड़ा में सम्मिलित होना चाहिए ।
इसके कुछ साइड इफ़ेक्ट है – आवश्यकता से अधिक देर तक लिंग टाइट रहना जिसे प्रीयपिसम कहते है । इसमें टाइट रहने के अतिरिक्त पीनस में दर्द भी होता है । इसे एक दिन में एक बार से अधिक नहीं लेना चाहिए।
3- वैक्यूम इरेक्शन डिवाइस – इसमें एक सिलेंडर नुमा यंत्र को पीनस पर रख कर नेगेटिव प्रेशर बनाया जाता है। इस से पीनस का आकार बड़ा हो जाता है । लेकिन ऐसा पूरी तरह नियंत्रित तरीक़े से किया जाता है । वांछित स्तर पर सिलेंडर पर लगा एक रिंग पीनस पर सरका देते है जिससे वही स्थिति को अधिकतम समय तक रखा जा सके।
4- पीनायल इंप्लांट सर्जरी – यदि कोई तरीक़ा अपेक्षित परिणाम नहीं देता तो इसे कर सकते हे। इस का प्रयोग सोच समझ कर करना चाहिए क्योंकि ये एक अचल और आक्रामक उपचार है । सर्जरी होने के बाद आप को इसी पर निर्भर रहना होगा । इसमें पीनस में ऑपरेशन द्वारा दो सिलेंडर नुमा पार्ट फ़िट कर देते है। सेक्स के लिए इन्हें सीधा कर लेते है और बाद में इसे फ़ोल्ड कर के अंडर गर्मेंट्स में छुपा लेते है । ऐसे ही एक अन्य ऑपरेशन में नीचे अंडकोश के पास एक पार्ट फ़िट कर देते है । इस में सेक्स के लिए इस पार्ट को पम्प की तरह दबाना होता है जिससे एक अन्य पार्ट का सेलायन वॉटर सिलेंडर में चला जाता है । इस से पीनस सेक्स के योग्य हो जाता है । सेक्स के बाद उसी पम्प को दोबारा चलाना होता है तो सिलेंडर वापिस पहले की स्थिति में आ जाता है ।
शीघ्रपतन
बात की जाये शीघ्र पतन की तो दुनिया भर के वयस्क पुरूषों में यह समस्या पायी ज़ाती है ।
और रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 35% से ज़्यादा पुरुषों की यह समस्या एक गंभीर रूप ले लेती है।
पर आइये जानते है यह समस्या है क्या –
यदि योनि में प्रवेश के 1 मिनट के भीतर पुरुष संखिलत हो जाता है तो उसे शीघ्रपतन कहा जाता है।
शीघ्र पतन की समस्या के कारण पहले तो रिश्तों में तनाव बढ़ने लगता है फिर समय के साथ निराशा, आत्महीनता और मामला बढ़ने पर तलाक की नौबत आ जाती है।
पर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शीघ्र पतन से जुडी समस्याएँ दो प्रकार की होती है –
Life Long – यानि सेक्स जीवन आरम्भ करने से लेकर
Aquired – यानि कुछ समय ठीक रहने के बाद से लेकर ।
कुछ मामलों में समस्या केवल एक पार्ट्नर के साथ होती है जिसे situational कहते है।
आइये अब शीघ्र पतन के कुछ कारणों के बारे में जान लेते है –
लिंग का अति संवेदनशील होना जिस से कम उत्तेजना से ही discharge हो जाता है। यदि किसी कारण तनाव की स्थिति हो जाए तो ये समस्या विकराल रूप धारण कर लेती हे।
लिंग में उत्तेजना की कमी
मानसिक परेशानी , अवसाद , ज़्यादा चिंता अथवा पार्ट्नर को संतुष्ट न कर पाने का डर
पार्ट्नर् से सम्बन्धों में तनाव. उपयुक्त एकान्त का अभाव
सेक्स हॉर्मोन की कमी
नर्वस सिस्टम में सेरोटोनिन की कमी
प्रास्टेट ग्रंथि की सूजन
उपचार –
काउन्सलिंग तथा exercise – किगेल exercise, प्राणायाम तथा नियमित व्यायाम ज़रूरी है । जीवन साथी से तनाव की स्थिति में पहले इसी से निपटना चाहिए । इस उपचार को ऑनलाइन भी लिया जा सकता है ।
दवा आवश्यक होती हे। कई दवाइयाँ असरदायक होती हे। हमें सभी मामलों में सफलता मिली है क्योंकि हम कॉम्प्रेहेन्सिव उपचार करते है ।
सर्जरी- लाइफ़ लोंग मामलों में frenuloplasty के अलावा कई प्रसीजर फ़ायदेमंद होते है ।
इसके लिए ४-६ महीने उपचार की आवश्यकता हो सकती हे। कई मामलों में कम समय दवा से भी काम चल जाता हे।
यदि आप को या आपके किसी परिचित को यह समस्या है तो अभी तुरंत डॉक्टर से मिलने का अपॉंट्मेंट ले सकते हे।
धातुस्राव
धातु रोग या धात रोग क्या है?
धात शब्द संस्कृत शब्द धातु से आया है, जिसका अर्थ है अमृत जो शरीर का निर्माण करता है। धातु रोग या धात सिंड्रोम को अंग्रेजी में Spermatorrhoea कहा जाता है। ये शब्दावली सही नहीं है क्योंकि इसमें कोई स्पर्म नहीं होता , केवल बल्बोंयूरेथरल ग्लैंड का स्राव होता है जिसका मक़सद मूत्र के मार्ग को गीला और समतल रखना होता है ।
कथित तौर पर यह एक ऐसी बीमारी है जो मुख्य रूप से पुरुषों में देखी जाती है लेकिन यह महिलाओं में भी पाई जा सकती है।
धातु रोग या धात सिंड्रोम की समस्या पूरे दक्षिण एशिया में कई समुदायों में देखी जाती है| एशिया में पाये जाने का कारण माना गया है शौच करते हुए उनके बैठने के तरीक़े को । इण्डियन स्टाइल शौच के लिए उकड़ू बैठते हुए मल मूत्र नज़र आ जाता है जबकि यूरोप में इसे देख नहीं सकते । ये स्राव होता तो सभी प्रदेश के लोगो में है परंतु अंग्रेज इसे देख नहीं पाते ।
पुरुष रोगी शिकायत करते हैं कि वे शीघ्र पतन या नपुंसकता से पीड़ित हैं। साथ ही बहुत बार उनके मूत्र त्याग करने से पहले या मूत्र के साथ वीर्य जैसा दिखने वाला स्राव निकल जाता है| इसके अलावा बहुत से रोगियों में सोते समय भी वीर्य निकल जाता
धातु रोग के क्या लक्षण हैं?
चक्कर आना
हल्की कमजोरी
रात को ठंड लगना या पसीना आना
वीर्य का अनैच्छिक स्राव
भूख कम लगना
जननांग क्षेत्रों के आसपास खुजली और जलन
असामान्य हृदय गति
एक चपटा लिंग
गंभीर पीठ दर्द
गर्म और मुलायम त्वचा
अंडकोष या पेरिनियम में दर्द
और भी अनेक प्रकार की समस्याओं से लोग आते है ।
इन सबके पीछे एक ही मनोंधारणा है – कि इंसान की सारी शक्ति उसके वीर्य में समाहित होती है इसलिए वीर्य की हानि से शक्ति क्षीण होती है । ये सब धारणाये सदियो से चली आ रही है । भारतीय आयुर्वेद में भी एक बूँद वीर्य रक्त की चालीस बूँद के समान कही गई है इसलिए वीर्य को बचाये रखने के लिए ब्रह्मचर्य को अति महत्व दिया गया है और चाइनीज़ सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन में हस्तमैथुन या किसी भी अन्य माध्यम से सेक्सुअल एनर्जी का नुक़सान प्राण घातक हो सकने की बात कही गई है । परंतु आधुनिक वैज्ञानिक परीक्षण करने पर इन में कोई सच्चाई नहीं पायी गई है ।
धातु रोग के कारण – ( नीचे लिखी सारी बाते केवल मिथ्या धरणाये है )
-यह मुख्य रूप से पुरुष प्रजनन प्रणाली से संबंधित बीमारी है।
ज्-यादा गर्म पानी से नहाने से धातु रोग हो सकता है|
सच्चाई ये है कि यौन उत्तेजनाओं को प्रभावित करने वाला दृश्य या ख़्याल आने का इस समस्या से कोई संबंध नहीं है । ऐसे ही आहार , अत्यधिक हस्तमैथुन और कम या ज़्यादा सेक्स करने का इस से कोई लेना देना नहीं है ।
धात रोग से नुकसान – सेक्स की ग़लत जानकारी के कारण अकारण चिंता करने से निम्न लक्षण अनुभव हो सकते है –
तंत्रिका तंत्र की कमजोरी।
जननांगों की क्षीणता।
यौन संतुष्टि न होना ।
त्वचा आदि की समस्या के कारण वृषण कोष संबंधी समस्याएं।
संकीर्ण मूत्र निकास मार्ग।
मलाशय के विकार जैसे बवासीर, एनल फिशर, कीड़े और त्वचा में फोड़े फुंसी।
मूत्राशय का अत्यधिक भरना। और भी न जाने क्या क्या !!!!
धात रोग का इलाज
1 – सभी प्रकार के नीम हकीमों से बचना बहुत ज़रूरी है । शहर की दीवारों और इंटरनेट पर बहुतायत में सेक्स के इलाज के गारंटी वाले विज्ञापनों से पूरी तरह बचें । ये आपको भ्रम में डाल कर अपना उल्लू सीधा करने वालो के समूह के अतिरिक्त कुछ नहीं है ।
केवल क्वालिफाइड यूरोलॉजिस्ट या सेक्सोलॉजिस्ट या मनोचिकित्सक के पास जाये ।
लाइफस्टाइल में बदलाव भी कर सकते है जैसे-
दिन के दौरान अधिक और रात के दौरान कम खाएं।
अच्छी तरह से संतुलित आहार लेने की कोशिश करें।
धूम्रपान बंद करें।
शराब का सेवन कम करें।
अपने पेट को साफ रखें।
अपने जननांग क्षेत्रों को साफ रखें|
सुबह जल्दी उठने की कोशिश करें|
खुद को तनाव मुक्त रखें और ध्यान या योग करें|
सिफिलिस
सिफलिस यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) है जो ट्रेपोनेमा पल्लिडम नामक जीवाणु से होता है।
लोगों को सिफलिस की बीमारी किस प्रकार लगती है?
सिफलिस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को लगती है। यदि एक व्यक्ति उस व्यक्ति के सीधे संपर्क में आता है जिसे सिफलिस की बीमारी है तो उसे सिफलिस लग सकता है। गर्भवती महिला से यह बीमारी उसके गर्भ में रहने वाले बच्चे को लग सकता है।सिफलिस शौचालय के बैठने के स्थान, दरवाजा के मूठ, तैरने के तालाब, गर्म टब, नहाने के टब, कपडा अदला-बदली करके पहने या खाने के बर्तन की साझेदारी से नहीं लगती।
सिफलिस के शुरुआती संकेत:
जननांगों, मलाशय, मुँह या त्वचा की सतह पर दर्दरहित छाला इस इन्फेक्शन का पहला संकेत है। कुछ लोगों का ध्यान इस छाले की तरफ जाता भी नहीं है क्योंकि यह पेनलेस होता है। कई बार ये छाले खुद ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन यदि ट्रीटमेंट न किया जाए तो बैक्टीरिया बॉडी में ही रह जाते हैं। पेनिसिलिन के साथ प्राइमरी ट्रीटमेंट द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है। ट्रीटमेंट के बाद सिफिलिस दोबारा वापस नहीं होता है, लेकिन इस बैक्टीरिया के ज्यादा कांटेक्ट में आने पर इस बीमारी की पुनरावृत्ति हो भी सकती है।
एक बार सिफिलिस से इन्फेक्टेड होने के बाद किसी व्यक्ति को इस बीमारी से फिर से इन्फेक्टेड होने से नहीं बचाया जा सकता। प्रेगनेंसी के दौरान महिलाएं अपने अजन्मे बच्चे को सिफलिस प्रेषित कर सकती हैं, जिसके संभावित रूप के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सिफिलिस इन्फेक्शन अपनी तीसरी स्टेज में लौटने से पहले 30 साल तक डीएक्टिवेट भी रह सकता है। आइए अब इस बीमारी के लक्षणों को क्रमबद्ध तरीके से समझते हैं –
प्राथमिक स्तर
सिफलिस में सबसे पहले एक या कई फुंसियां दिखाई पड़ती हैं। सिफलिस संक्रमण और पहले लक्षण में 10 से 90 (औसतन 21 दिन) दिन लग जाते हैं। यह फुंसी सख्त, गोल, छोटा और बिना दर्द वाला होता है। यह उस स्थान पर होता है जहां से सिफलिस ने शरीर में प्रवेश किया है। यह 3 से 6 सप्ताह तक रहता है और बिना उपचार के ठीक हो जाता है तथापि यदि पर्याप्त उपचार नहीं किया जाता तो संक्रमण दूसरे स्तर पर चला जाता है।
दूसरा स्तर
दूसरे स्तर की विशेषता है कि त्वचा में दोदरा (रैश) हो जाते हैं और घाव में झिल्ली पड़ जाती है। दोदरे में सामान्यतः खुजली नहीं होती। हथेली और पांव के तालुओं पर हुआ ददोरा खुरदरा, लाल या लाल भूरे रंग का होता है तथापि दिखने में अन्य प्रकार के दोदरे, शरीर के अन्य भागों में भी पाये जा सकते हैं जो कभी-कभी दूसरी बीमारी में हुए दोदरों की तरह होता है। दोदरों के अतिरिक्त माध्यमिक सिफलिस में बुखार, लसिका ग्रंथि का सूजना, गले की खराश, कहीं-कहीं से बाल का झड़ना, सिरदर्द, वजन कम होना, मांस पेशियों में दर्द और थकावट के लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं।
अंतिम स्तर
सिफलिस का अव्यक्त छुपा स्तर तब शुरू होता है जब माध्यमिक स्तर के लक्षण दिखाई नहीं पड़ते। सिफलिस के अंतिम स्तर में यह मस्तिष्क, स्नायु, आंख, रक्त वाहिका, जिगर, अस्थि और जोड़ जैसे भीतरी इंद्रियों को खराब कर देते हैं। यह क्षति कई वर्षों के बाद दिखाई पड़ती है। सिफलिस के अंतिम स्तर के लक्षणों में मांस पेशियों के संचालन में समन्वय में कठिनाई, पक्षाघात, सुन्नता, धीरे धीरे आंख की रोशनी जाना और यादाश्त चले जाना डेमेनशिया शामिल हैं। ये इतने भयंकर होते हैं कि इससे मृत्यु भी हो सकती है।
सिफलिस की रोकथाम किस प्रकार की जा सकती है ?
इस बीमारी से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग न किया जाए। शराब व ऩशे की गोलियां आदि न लेने से भी सिफलिस को रोका जा सकता है क्योंकि ये चीजे जोखिम भरे संभोग की ओर हमें ले जाते हैं।
सुजाक
सुजाक एक यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) है। सुजाक नीसेरिया गानोरिआ नामक जीवाणु से होता है जो महिला तथा पुरुषों में प्रजनन मार्ग के गर्म तथा गीले क्षेत्र में आसानी और बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके जीवाणु मुंह, गला, आंख तथा गुदा में भी बढ़ते हैं।
व्यक्तियों को सुजाक (गानोरिआ) की बीमारी किस प्रकार लगती है ?
सुजाक लिंग, योनि, मुंह या गुदा के संपर्क से फैल सकता है। सुजाक प्रसव के दौरान मां से बच्चे को भी लग सकती है।
सुजाक के संकेत और लक्षण क्या-क्या है ?
किसी भी यौन सक्रिय व्यक्ति में सुजाक की बीमारी हो सकती है। जबकि कई पुरुषों में सुजाक के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते तथा कुछ पुरुषों में संक्रमण के बाद दो से पांच दिनों के भीतर कुछ संकेत या लक्षण दिखाई पड़ते हैं। कभी कभी लक्षण दिखाई देने में 30 दिन भी लग जाते हैं। इनके लक्षण हैं- पेशाब करते समय जलन, लिंग से सफेद, पीला या हरा स्राव। कभी-कभी सुजाक वाले व्यक्ति को अंडग्रंथि में दर्द होता है या वह सूज जाता है। महिलाओं में सुजाक के लक्षण काफी कम होते हैं। आरंभ में महिला को पेशाब करते समय दर्द या जलन होती है, योनि से अधिक मात्रा में स्राव निकलता है या मासिक धर्म के बीच योनि से खून निकलता है।
सुजाक (गानोरिया) की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
इस बीमारी से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि सुजाक रोगी के साथ संभोग न किया जाए और जल्द से जल्द सेक्सोलोजिस्ट से परामर्श लिया जाये।