धात शब्द संस्कृत शब्द धातु से आया है, जिसका अर्थ है अमृत जो शरीर का निर्माण करता है। धातु रोग या धात सिंड्रोम को अंग्रेजी में Spermatorrhoea कहा जाता है। ये शब्दावली सही नहीं है क्योंकि इसमें कोई स्पर्म नहीं होता , केवल बल्बोंयूरेथरल ग्लैंड का स्राव होता है जिसका मक़सद मूत्र के मार्ग को गीला और समतल रखना होता है ।
कथित तौर पर यह एक ऐसी बीमारी है जो मुख्य रूप से पुरुषों में देखी जाती है लेकिन यह महिलाओं में भी पाई जा सकती है।
धातु रोग या धात सिंड्रोम की समस्या पूरे दक्षिण एशिया में कई समुदायों में देखी जाती है| एशिया में पाये जाने का कारण माना गया है शौच करते हुए उनके बैठने के तरीक़े को । इण्डियन स्टाइल शौच के लिए उकड़ू बैठते हुए मल मूत्र नज़र आ जाता है जबकि यूरोप में इसे देख नहीं सकते । ये स्राव होता तो सभी प्रदेश के लोगो में है परंतु अंग्रेज इसे देख नहीं पाते ।
पुरुष रोगी शिकायत करते हैं कि वे शीघ्र पतन या नपुंसकता से पीड़ित हैं। साथ ही बहुत बार उनके मूत्र त्याग करने से पहले या मूत्र के साथ वीर्य जैसा दिखने वाला स्राव निकल जाता है| इसके अलावा बहुत से रोगियों में सोते समय भी वीर्य निकल जाता
और भी अनेक प्रकार की समस्याओं से लोग आते है ।
इन सबके पीछे एक ही मनोंधारणा है – कि इंसान की सारी शक्ति उसके वीर्य में समाहित होती है इसलिए वीर्य की हानि से शक्ति क्षीण होती है । ये सब धारणाये सदियो से चली आ रही है । भारतीय आयुर्वेद में भी एक बूँद वीर्य रक्त की चालीस बूँद के समान कही गई है इसलिए वीर्य को बचाये रखने के लिए ब्रह्मचर्य को अति महत्व दिया गया है और चाइनीज़ सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन में हस्तमैथुन या किसी भी अन्य माध्यम से सेक्सुअल एनर्जी का नुक़सान प्राण घातक हो सकने की बात कही गई है । परंतु आधुनिक वैज्ञानिक परीक्षण करने पर इन में कोई सच्चाई नहीं पायी गई है ।
– यह मुख्य रूप से पुरुष प्रजनन प्रणाली से संबंधित बीमारी है।
ज्यादा गर्म पानी से नहाने से धातु रोग हो सकता है|
सच्चाई ये है कि यौन उत्तेजनाओं को प्रभावित करने वाला दृश्य या ख़्याल आने का इस समस्या से कोई संबंध नहीं है । ऐसे ही आहार , अत्यधिक हस्तमैथुन और कम या ज़्यादा सेक्स करने का इस से कोई लेना देना नहीं है ।
सेक्स की ग़लत जानकारी के कारण अकारण चिंता करने से निम्न लक्षण अनुभव हो सकते है –
तंत्रिका तंत्र की कमजोरी।
जननांगों की क्षीणता।
यौन संतुष्टि न होना ।
त्वचा आदि की समस्या के कारण वृषण कोष संबंधी समस्याएं।
संकीर्ण मूत्र निकास मार्ग।
मलाशय के विकार जैसे बवासीर, एनल फिशर, कीड़े और त्वचा में फोड़े फुंसी।
मूत्राशय का अत्यधिक भरना। और भी न जाने क्या क्या !!!!
1 – सभी प्रकार के नीम हकीमों से बचना बहुत ज़रूरी है । शहर की दीवारों और इंटरनेट पर बहुतायत में सेक्स के इलाज के गारंटी वाले विज्ञापनों से पूरी तरह बचें । ये आपको भ्रम में डाल कर अपना उल्लू सीधा करने वालो के समूह के अतिरिक्त कुछ नहीं है ।
केवल क्वालिफाइड यूरोलॉजिस्ट या सेक्सोलॉजिस्ट या मनोचिकित्सक के पास जाये ।
लाइफस्टाइल में बदलाव भी कर सकते है जैसे-
दिन के दौरान अधिक और रात के दौरान कम खाएं।
अच्छी तरह से संतुलित आहार लेने की कोशिश करें।
धूम्रपान बंद करें।
शराब का सेवन कम करें।
अपने पेट को साफ रखें।
अपने जननांग क्षेत्रों को साफ रखें|
सुबह जल्दी उठने की कोशिश करें|
खुद को तनाव मुक्त रखें और ध्यान या योग करें|